Thursday, April 29, 2010

strong lines

The time has come to recognise another strong body of contribution to the well that is Bollywood dialogue. The label says Taaqatwar, David Dhawan's ode to Manmohan Desai, Bollywood clichés, stock music and kitchen sink cinema. A gentleman named Anwar Khan is responsible for seasoning this goulash with zingy lines that have made kino clunkers worth everyone's while over chicken and booze on Friday nights. The film itself deserves a separate post acknowledging the numerous references to Bollypop and convention. This entry, however, focuses only on the contributions officially credited to Anwar Khan.


माल चाहे दो हज़ार का हो, दो लाख का हो या दो करोड़ का हो, footpath पे आकार दो कौड़ी का हो जाता है

ये दो टके का officer officer नहीं हमारे लिये cancer है cancer

हम वो शैतान हैं जो बिना दाम के जान ख़रीद लेते हैं तो दुकान क्या चीज़ है?

दुनिया चाँद तक पहुँची है और मुझे (beat) इंतेक़ाम के आसमाँ तक पहुँचना है पिताजी

तेरी जबान है क्या whole-sale की दुकान है?

क़सम Jesus की मुंजाल ख़ुराना को जब तक खल्लास नहीं कर डालेगा, अपुन Jesus की शकल भी नहीं देखेगा

ये ज़माना रावण का है; नज़र उठा के देख; चारों तरफ़ रावण ही रावण हैं; छोटी कुर्सी पर छोटा रावण बड़ी कुर्सी पर बड़ा रावण; लोहे की कुर्सी पर मज़बूत रावण; लकड़ी की कुर्सी पर कमज़ोर रावण

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